भजन संहिता 32

1 क्या ही धन्य है वह जिसका अपराध

2 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म

3 जब मैं चुप रहा

4 क्योंकि रात-दिन मैं तेरे हाथ के नीचे दबा रहा;

5 जब मैंने अपना पाप तुझ पर प्रगट किया

6 इस कारण हर एक भक्त तुझ से ऐसे समय

7 तू मेरे छिपने का स्थान है;

8 मैं तुझे बुद्धि दूँगा, और जिस मार्ग में तुझे

9 तुम घोड़े और खच्चर के समान न बनो जो समझ नहीं रखते,

10 दुष्ट को तो बहुत पीड़ा होगी;

11 हे धर्मियों यहोवा के कारण आनन्दित

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हे धर्मियों, यहोवा के कारण जयजयकार करो।

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