नीतिवचन 9

1 बुद्धि ने अपना घर बनाया

2 उसने भोज के लिए अपने पशु काटे, अपने दाखमधु में मसाला मिलाया

3 उसने अपनी सेविकाओं को आमंत्रित करने भेजा है;

4 “जो कोई भोला है वह मुड़कर यहीं आए!”

5 “आओ, मेरी रोटी खाओ,

6 मूर्खों का साथ छोड़ो,

7 जो ठट्ठा करनेवाले को शिक्षा देता है, अपमानित होता है,

8 ठट्ठा करनेवाले को न डाँट, ऐसा न हो कि वह तुझ से बैर रखे,

9 बुद्धिमान को शिक्षा दे, वह अधिक बुद्धिमान होगा;

10 यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है,

11 मेरे द्वारा तो तेरी आयु बढ़ेगी,

12 यदि तू बुद्धिमान है, तो बुद्धि का फल तू ही भोगेगा;

13 मूर्खता बक-बक करनेवाली स्त्री के समान है; वह तो निर्बुद्धि है,

14 वह अपने घर के द्वार में,

15 वह उन लोगों को जो अपने मार्गों पर सीधे-सीधे चलते हैं यह कहकर पुकारती है,

16 “जो कोई भोला है, वह मुड़कर यहीं आए;”

17 “चोरी का पानी मीठा होता है,

18 और वह नहीं जानता है, कि वहाँ मरे हुए पड़े हैं,

पढ़ना जारी रखें नीतिवचन 10...

सुलैमान के नीतिवचन।

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attribution Bridge Connectivity Solutions Pvt. Ltd., 2019 (ब्रिज कनेक्टिविटी सॉल्यूशंस प्रा. लि., 2019)
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